Wednesday, January 26, 2011

ये कैसा गणतंत्र, जहां बालमन नही स्वतंत्र


भले ही आज हम गणतंत्र दिवस के उल्लास में डूबे हों, सरकारी व चौथे स्तंभ के झूठे प्रचार-प्रसार के बल पर जय भारत जय इंडिया कर रहे हों, लेकिन क्या वाकई आज हम गणतंत्र के सही मायनों पर खरे उतर पाए हैं। हैरत की बात है कि हमारे देश का आधार स्तंभ यानी बालमन ही हजारों बेडिय़ों में जकड़ा हुआ है। सरकार की कथित तमाम कोशिशों के बावजूद बच्चों की एक बड़ी आबादी मेहनत की भट्टी में तपने को मजबूर है। आसमान में पतंग उड़ाने, कहीं दूर तक सैर तक जाने, मजे -मौज और पढ़ाई करने वाले दिनों में अपनी इच्छाओं का दमन करके दुनिया के लगभग एक करोड़ बच्चे कहीं कल -कारखानों में, कहीं होटलों में तो कहीं बंद कोठियों की साफ -सफाई में लगे हैं। कानून किताबों में पड़ा उंघ रहा है। क्योंकि उसे जगाने वाले हाथ देखकर भी कुछ नहीं करते बल्कि कई बार तो वह खुद ही कानून तोड़ते नजर आते हैं। और इस पर भी दर्दनाक बात यह कि बच्चों के मुददे कभी विधानसभा और संसद में गंभीरता और नियमितता से नहीं उठाए जाते। कारण साफ है, बच्चों का वोट नहीं होता। यदि हम सरकारी आंकड़ों पर ही गौर करें तो पता चलता है कि देश में वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक लगभग सवा करोड़ बाल मजदूर हैं। जबकि गैर सरकारी आकंड़े इससे तीन गुणा अधिक है। देश के गरीब तबके से जुड़े अधिकांश बच्चे बेहतर शिक्षा से वंचित हैं। शारीरिक व मानसिक विकास की बात भी बेमानी है। भारतीय संविधान संशोधन के बाद देश के चौदह वर्ष तक के हर बच्चे को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का अधिकार दिया गया है। लेकिन यह भी फौरी घोषणा बनता दिखाई दे रहा है। आज भले ही हम गणतंत्र के अवसर पर सरकारी घोषणाओं को सुन कर खुश हो रहे हों, लेकिन क्या कभी गौर किया कि पहले की घोषणाओं से देश, समाज या हमें कितना फायदा हुआ। बच्चों की ही बात लीजिए, बच्चों को स्वास्थ्य और पोषण की व्यवस्था, निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा बालश्रम को दूर कर संरक्षण की व्यवस्था करना बेहद जरूरी है एवं अनेक बार अलग-अलग सरकारों ने घोषणाएं की हैं। लेकिन फिर भी हालात जस के तस बने हुए हैं, बल्कि कह सकते हैं कि हालात और अधिक बिगड़ते जा रहे हैं। निश्चित ही स्थिति खासा भयावह है, लेकिन इस ओर ध्यान देने का साहस किसी में नहीं। किसी के पास इतना वक्त नहीं कि देश के बालमन पर गौर करे, उन्हें मजदूरी से बचाए, उन्हें निशुल्क शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा दे। आखिर ये कब तक चलेगा? कब तक यूं ही बालमन घुट-घुट कर जीएगा? और हम कब तक गणतंत्र-स्वतंत्र दिवस पर झूठी, महत्वहीन और खोखली खुशी मनाएंगे? 

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