Tuesday, January 18, 2011

गरीबी बनाम वोट और बाल अपराध

यह निर्विवाद सत्य है कि देश में अधिकांश बाल अपराध पारिवारिक गरीबी के कारण होते हैं। यही गरीबी अशिक्षा का कारण भी बनती है। जबकि सभी सरकारें हर बार गरीबी हटाने का खोखला दावा करते हुए सत्तासीन होती हैं। सत्ता में आने के बाद उन्हें गरीबी और गरीबों से कोई सरोकार नहीं रहता। देखा जाए तो हर अपराध के पीछे कहीं न कहीं प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में राजनेताओं का हाथ होता है। बाल अपराध जैसे गंभीर विषय की जड़ तक जाएं तो यहां भी वही गरीबी और वही राजनेता नजर आते हैं। हालांकि संविधान के अनुच्छेद 45 के तहत 2003 में 93वें संविधान संशोधन के तहत श्रम के घण्टे कम कर बच्चों को बालश्रम से मुक्ति व पुनर्वास के लिए विशेष विद्यालय एवं पुनर्वास केन्द्रों की व्यवस्था की गई है। साथ ही रोजगार से हटाए गये बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा, व्यवसायिक प्रशिक्षण, अनुपूरक पोषाहार आदि की व्यवस्था करने के लिए भी सरकार को प्रतिबद्ध किया गया है। उधर, उच्च न्यायालय ने अपने दिसम्बर 1996 के बाल श्रम से सम्बन्धित निर्णय में बालश्रम के लिए गरीबी को उत्तरदायी मानते हुए कहा कि जब तक परिवार के लिए आय की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाती, तब तक बालश्रम से निजात पाना मुश्किल है। यानी समझा हर कोई है, लेकिन सतह तक पहुंचने के लिए किसी के पास समय नहीं है। वर्ष 2006 का किशोर न्याय संशोधन अधिनियम 2006 के द्वारा बच्चों के लिए अधिक मैत्रीपूर्ण एवं महत्वपूर्ण है। लेकिन सच्चाई यह है कि देश में बाल अपराधियों की संख्या बढ़ती जा रही है। बच्चे अपराधी न बने इसके लिए आवश्यक है कि अभिभावकों और बच्चों के बीच बर्फ-सी जमी संवादहीनता एवं संवेदनशीलता को फिर से पिघलाया जाये। फिर से उनके बीच स्नेह, आत्मीयता और विश्वास का भरा-पूरा वातावरण पैदा किया जाए। श्रेष्ठ संस्कार बच्चों के व्यक्तित्व को नई पहचान देने में सक्षम होते हैं। शिक्षा पद्धति भी ऐसी ही होनी चाहिए। गहरे अपनेपन के आधार पर अभिभावकों और बच्चों के बीच की दूरी और दरार को मिटाकर वर्तमान समस्याओं से उपजते बाल-अपराध से निजात पाई जा सकती है। हमें बच्चों को उचित संस्कार देने व उनमें मानवीय मूल्यों की स्थापना करने के लिए सजग, सचेष्ट और सक्रिय होना होगा। तभी इस बिगड़ते बचपन और भटकते राष्ट्र के नव पीढ़ी के कर्णधारों का भाग्य और भविष्य उज्जवल हो सकता है। अन्यथा सरकार व राजनेताओं के भरोसे हालाद दिन ब दिन बदतर होते जाएंगे। क्योंकि 61 वर्षों के अंतराल में बाल अपराध कम होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है, ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारें हमारा, देश का या बच्चों को कैसे उद्धार करेगी। 

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