बाल अपराध


हमारे राष्ट्र का भावी विकास और निर्माण वर्तमान पीढ़ी के साथ ही आने वाली नई पीढ़ी पर भी निर्भर है। तभी तो कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। लेकिन आज नैतिक पतन आगामी पीढ़ी के लिए विध्वंसक का कार्य कर रहा है। स्वच्छंद सेक्स, नशा, बड़े-बुजुर्गों का अपमान, अनुशासनहीनता, उदंद्डता और नियमित के छोटे-बड़े अपराध अब बच्चों की जीवन शैली में ढलने लगे हैं। बच्चों को बीड़ी पीते, गुटका खाते, चोरी करते और युवतियों के साथ अश्लील हरकतें करते अक्सर देखा जा सकता है। आश्चर्य की बात है कि बच्चे-बच्चियां, जिन्हें उम्र का तकाजा नहीं है , वे वर्जनाओं और मर्यादाओं की सीमाओं को लांघ चुके हैं। शायद यही वजह है कि बाल अपराध के आंकड़े दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। शराब, सिगरेट, मादक दवाएं लेना, चोरी से सैर सपाटा, स्कूल से गायब होना, कैफे में घंटों तक इंटरनेट पर अश्लीलता देखना, झूठ बोलना तथा पाश्चात्य परिधान उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुके हैं। निश्चित ही इसके पीछे परिवार, अवांछित पड़ोस, समाज, स्कूल का अविवेकपूर्ण वातावरण, टीवी, सिनेमा, असुरक्षा की भावना, भय, अकेलापन, भावनात्मक द्वन्द्व, अपर्याप्त निवास, निम्न जीवन स्तर, पारिवारिक अलगाव, पढ़ाई का बोझ, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, आधुनिक संस्कृति, मनोवैज्ञानिक एवं पारिवारिक कारक निहित हैं। देखा जाए तो आज के अभिभावक भी भौतिकता एवं महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ में व्यस्त हैं और वे बच्चों को खुद ही बिगाड़ रहे हैं। पिता को व्यवसाय व नौकरी और माँ को नियिमत कार्यों व मित्रों से फुरसत नहीं है। 
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, 'बाल अपराधी वह है जो घर छोड़ दे, आदतन आज्ञाकारी नहीं हो, या माता-पिता के नियन्त्रण में नहीं रहता हो तथा कानून का उल्लंघन करने में उसे मजा आता हो। एक जानकारी के अनुसार बाल अपराधों में स्थानीय एवं स्पेशल विधियों के तहत 1998 में सबसे अधिक योगदान उन अपराधों ने दिया जो प्रोहिबिसन और आबकारी एक्ट और गेम्बलिंग एक्ट के तहत होते हैं। वर्ष 1998 में पांच राज्यों मसलन महाराष्ट्र में 21.6 प्रतिशत,  मध्य प्रदेश 27.2 प्रतिशत, राजस्थान 8.5 प्रतिशत, बिहार 6.8 प्रतिशत, और आन्ध्र प्रदेश आठ प्रतिशत में यानी पूरे देश में आईपीसी के तहत कुल बाल-अपराधों में से 77 प्रतिशत हुए। बालअपराध के मुख्य कारकों में गरीबी और अशिक्षा सबसे महत्वपूर्ण रहते हैं। बाल अपराधी ज्यादातर लड़के होते हैं तथा उनकी भी आयु सीमा 12 सेे 16 वर्ष के बीच रहती है, यही नहीं बाल अपराधी ग्रामीण क्षेत्र की बजाए शहरी क्षेत्र में अधिक होते हैं। बाल अपराध की समस्याओं से निकालने एवं उबारने तथा उनके विकास के लिए परिवार में भावनात्मक पोषण एवं साहस तथा सम्बल प्रदान किया जाना सर्वापरी है। किशोर न्याय अधिनियम 1986 के तहत बाल अपराध पर रोक लगाने का सार्थक प्रयास किया गया है। 

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