बचपन

बचपन........... 'हिंदुस्तानी बचपन'। आपका, मेरा या यूं कहें कि हम सबका बचपन। हमारे बुजुर्गों का बचपन या हमारे बच्चों का बचपन। हर दिन, हर पल हम बचपन से रूबरू होते हैं, लेकिन भागमभाग इस जिंदगी की दौड़ धूप में हमने अपने देश के बचपन को कहीं भुला दिया है। आज जिस तरह देश में जल, बाघ, संस्कृति और कन्या बचाने की मुहीम चल रही है, ठीक उसी तरह ही हमें बचपन के प्रति गंभीर होना पड़ेगा। फिर बात चाहे बिगड़ते, अपराधी होते बचपन की हो या फिर फास्ट फूड एवं गरीबी से बीमार होते बचपन की। या श्रम व शरीर से शोषित होते बचपन की। कुछ ऐसे ही हालात उस बचपन की है, जिसे दुनिया में आने से पहले समाज के ठेकेदार और राक्षसी रूपी डॉक्टर गर्भ में ही दफन कर देते हैं। निश्चित ही आज 'हिंदुस्तानी बचपन' को बचाने की खासी जरूरत है और इसमें हम सभी को शामिल होना पड़ेगा। वैसे भी सफेदपोशों व नौकरशाहों की बदौलत बचपन बचाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। ये हकीकत है कि यदि सरकार 1000 रुपए बच्चों के नाम पर जारी करती है तो मात्र सवा रुपया ही बच्चों के हित पर खर्च होता है। यही नहीं जिस बचपन में हम फूलों सी खिलती हंसी, शरारत, रूठना, मनाना, जिद पर अड़ जाना जैसी पहचान की अपेक्षा रहती है, वही बचपन अब भटकने लगा है। यह गंभीर समस्या है कि बच्चों के साथ अपराध होता है, लेकिन इसे भी नकारा नहीं जा सकता कि वे भी अपराधी बनते जा रहे हैं। उदंद्डता, उच्छृंखलता और अनुशासनहीता तथा उदासी व तनाव बचपन की पहचान बनती जा रही है। इसके लिए कहीं न कहीं हम, हमारा समाज, परिवार, अवांछित पड़ोस, स्कूल का अविवेकपूर्ण वातावरण, टीवी, सिनेमा आदि सब दोषी हैं। आपको नहीं लगता कि हमें 'हिंदुस्तानी बचपनÓ के लिए कुछ करना चाहिए, फौरी कागजी खानापूर्ति व कथित समाज सेवा से ऊपर उठना चाहिए ? वाकई में जगने और जगाने की आवश्यकता है, हमारे आस-पास भटकते, बर्बाद होते और शोषित होते बचपन पर ध्यान देने की जरूरत है। उम्मीद ही बल्कि पूर्णत: विश्वास है कि हम सब मिलकर जोश व जुनून के साथ 'हिंदुस्तानी बचपन' को बचाने में अपना अमूल्य समय व योगदान देंगे और उनके तथा देश के भविष्य के प्रति गंभीर होंगे। इसी आशा के साथ आपका अपना ...... 'हिंदुस्तानी बचपन'।

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