Sunday, December 12, 2010

20 लाख से ज्यादा बच्चों की असमय मौत

ग्लोबल मूवमेंट फॉर चिल्ड्रन(जीएमसी) के जरिए जो सर्वेक्षण कराए गए हैं उससे भारत में नौनिहालों की खस्ता हालात का पता चलता है। इस सर्वेक्षण के मुताबिक देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की हालात सबसे बद्त्तर है। बीमारियों, कुपोषण और दूसरे कारणों से देश में हर साल 20 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत असमय हो जाती है। इतना ही नहीं, तीन साल से कम उम्र के 46 प्रतिशत बच्चे कम वजन के होते हैं। और पांच साल से कम उम्र के कुपोशित एक तिहाई बच्चे भारत में हैं। जाहिर है कुपोषित बच्चों की सबसे ज्यादा तादाद भारत में बसती है। यूनीसेफ से ताल्लुक रखने वाले चीफ फील्ड सर्विस एडार्ड बीगबेडर के मुताबिक समाज के जिस तपके से ये बच्चे ताल्लुक रखते हैं वह तपका समाज का सबसे कम जागरूक है। जागरूकता न होने की वजह से बच्चों की ठीक तरह से देखभाल और पोषण नहीं हो पाता है। इससे जहां बच्चे जल्द कुपोशण का शिकार बन जाते हैं वहीं पर बचपन से ही उनमें ऐसी तमाम गम्भीर बीमारियां लग जातीं हैं जो उनकी मौत का कारण बनतीं हैं। ज्यादाती बच्चों की मौत डायरिया और निमोनिया से होती है। यानी खराब पानी और खराब भोजन के कारण ज्यादातर बच्चे मौत का षिकार होते हैं।
देश और विदेश के बाल विषेशज्ञों के मुताबिक भारत में शिशु मृत्युदर सबसे ज्यादा होने के तमाम वजहों में सबसे बड़ी वजह बच्चों के प्रति परिवार और समाज का इनके प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैया है। इस गैरजिम्मेदाराना रवैया के चलते निम्न मध्य और निम्नवर्ग परिवारों से ताल्लुक रखने वाले इन बच्चों की हालात मजलूमों जैसी होती है। दूसरी तरफ केंद्र और राज्य सरकारों का स्वास्थ्य मंत्रालय भी इनके प्रति बेहद लापरवाही बर्तता है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक बच्चों की सुरक्षा और पोशण के लिए आवंटित रकम ज्यादातर भ्रष्‍टाचार की भेंट चढ़ जाती है। विभाग के कर्मचारी, अधिकारी और चिकित्सक बच्चों की सुरक्षा को लेकर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं। खासकर गांवों और कस्बों के स्वास्थ्य विभागों की हालात बहुत ही बदतर होती है। दवा और देखभाल दोनों की हालात खराब होती है। कहा जाता है-’गांवों में दवा है तो डॉक्टर नहीं, डॉक्टर हैं तो दवा नहीं। यानी हर स्तर पर लापरवाही बरती जाती है। सबसे ताज्जुब की बात यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस बिडम्बना को जानते हुए भी इसमें कोई सुधार नहीं करते हैं। इस लिए देश का बचपन अंधकार की तरफ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
संयुक्त राष्‍ट्र संघ भारत के संकटग्रस्त नौनिहालों को लेकर अनगिनत बार चिंता व्यक्त कर चुका है लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें आजादी के 64 साल बाद भी इस तरफ कोई कारगर कदम नहीं उठा सकी हैं। फाइलों में भले ही बच्चों की सुरक्षा और उचित पोशण के बहुत सारे कदम उठाने की बात लिखी जाती हो, लेकिन सच्चाई को इससे कोई लेना-देना नहीं होता है। इस गैरजिम्मेदाराना बर्ताव के कारण शिशुओं की हालात इस वजह से दिनोंदिन खराब होती जा रही है। आने वाले वक्त में यदि सरकारें इस तरफ कोई जिम्मेदाराना कदम नहीं उठातीं तो बच्चों की मृत्युदर और भी बढ़ सकती है, इसमें कोई दो राय नहीं है।°°साभार- प्रवक्ता.कॉम

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